مغربی افریقہ کی تحریک جہاد
Maghribi Afriqa ki Tahrik-e Jihad
Translation ظفرالاسلام خان
عثمان بن فودی اور صوکتو خلافت
ملّی مسائل : چند اہم سوالوں کے جوابات
Milli Masael – chand aham sawalon ke jawabat
Year 2000
ISBN 8172210175, 9788172210175
ھندوستان ابتدائی مسلممورخین کی نظروں میں (Hindustan)
مسلمان ساتویں صدی عیسوی سے برصغیر میں داخل ہونے لگے۔ ان میں فاتح، تاجر ، سیاح اور مبلغ ہر قسم
अस्पताल से जेल तक—गोरखपुर अस्पताल त्रासदी Aspataal se jail tak — Gorakhpur aspataal traasdee (Hindi)
“ध्वस्त सरकारी स्वास्थ्य सेवा, भयानक चिकित्सा संकट।
63 बच्चों, 18 वयस्कों का नरसंहार।
वास्तव में क्या हुआ, आज़माइश में फंसे डॉक्टर की ज़ुबानी।
10 अगस्त 2017 की शाम को, उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में राजकीय बाबा राघव दास मेडिकल कॉलेज के नेहरू अस्पताल में तरल ऑक्सीजन ख़त्म हो गई। सूचना के अनुसार, अगले दो दिनों में, अस्सी से अधिक रोगियों —तिरसठ बच्चों और अठारह वयस्कों — की जान चली गई। बीच के घंटों में, कॉलेज के बाल रोग विभाग में सबसे जूनियर लेक्चरर डॉ. कफ़ील ख़ान ने ऑक्सीजन सिलेंडरों को सुरक्षित करने, आपातकालीन उपचार करने और अधिक से अधिक मौतों को रोकने के लिए कर्मचारियों को एकजुट करने के असाधारण प्रयास किए। …
आरएसएस को पहचानें (Hindi) RSS Ko Pehchaney
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दस्तावेज़ों पर आधारित
ऑपरेशन अक्षरधाम : मंदिर पर आतंकी हमला (Hindi)
पूरी दुनिया में ही हिंसा की बड़ी घटनाओं में अधिकतर ऐसी हैं जिन पर राज्य व्यवस्था द्वारा रचित होने का शक गहराया है। लेकिन रहस्य खुलने लगे हैं।
राज्य व्यवस्था को नियंत्रित करने वाले समूह अपनी स्वभाविक नियति को कृत्रिम घटनाओं से टालने की कोशिश करते हैं। वे अक्सर ऐसी घटनाओं के ज़रिए समाज में धर्म परायण पृष्ठभूमि वाले लोगों के बीच अपने तात्कालिक ज़रूरत को पूरा करने वाला एक संदेश भेजते हैं। उनका मक़सद समाजिक जीवन का ताना बाना और इंसानियत नहीं होती हैं। लेकिन यह इंसानी फ़ितरत है कि मूल्यों व संस्कृति को सुदृढ़ करने के मक़सद से जीने वाला सामान्य जन व बौद्धिक हिस्सा उस तरह की तमाम घटनाओं का अन्वेषण करता है और रचे गए झूठों को नकारने के लिए इतिहास की ज़रूरतों को पूरा करता है।
भारत में तीसेक वर्षो के दौरान जो बड़ी हिंसक घटनाएं हुईं उनके बारे में लोक धारणा स्पष्ट है। रक्षक जब भक्षक होता है तो लोक मानस अपनी तैयारी में जुट जाता है। अक्षरधाम की घटना का अन्वेषण बेहद तथ्यात्मक और तार्किक रूप में किया गया है। पूरी दुनिया में लोगों के खि़लाफ छेड़े गए एकतरफ़ा युद्ध के इस अध्याय का यह बारीकी से प्रस्तुत विवरण भी है और लोकतांत्रिक और समानता पर आधारित शासन व्यवस्था की खोज की दीर्घकालीन ज़रूरत का दस्तावेज़ भी।
आतंकी घटनाएं ‘कैपेबिलिटी डेमोंस्ट्रेशन’ अपने अंतर्विरोधों के बावजूद सत्ता की आम सहमति और आत्मघाती दस्तों के आविष्कार की एक पैकेजिंग है। यह आम धारणा आकार ले रही है और वह भविष्य में अपने राजनीतिक रास्तों की तलाश में लग चुकी है। पंजाब में आतंकवाद के अन्वेषण ने वहां एक नए तरह के राजनीतिक विमर्श को खड़ा किया है। यह किताब मुस्लिम आतंकवाद के शीर्षक की तमाम घटनाओं के ऐसी ही पड़ताल की ज़रूरत का एक दबाव बनाती है।
अनिल चमड़िया
वरिष्ठ पत्रकार
करकरे के हत्यारे कौन? भारत में आतंकवाद का असली चेहरा (Hindi)
राज्य और राज्यविहीन तत्त्वों द्वारा राजनीतिक हिंसा या आतंकवाद का एक लम्बा इतिहास भारत में रहा है। इस आरोप ने कि भारतीय मुसलमान आतंकवाद में लिप्त हैं, 1990 के दशक के मध्य में हिंदुत्ववादी शक्तियों के उभार के साथ ज़ोर पकड़ा और केंद्र में भाजपा की सत्ता के ज़माने में राज्य की विचारधारा बन गया। यहाँ तक कि “सेक्यूलर” मीडिया ने सुरक्षा एजेंसियों के स्टेनोग्राफ़र की भूमिका अपना ली और मुसलमानों के आतंकवादी होने का विचार एक स्वीकृत तथ्य बन गया | हद यह कि बहुत-से मुसलमान भी इस झूठे प्रोपेगण्डे पर विश्वास करने लगे। पूर्व वरिष्ठ पुलिस अधिकारी एस.एम. मुशरिफ़ ने, जिन्होंने तेलगी घोटाले का भंडाफोड़ किया था, इस प्रचार-परदे के पीछे नज़र डाली है, और इसके लिए सार्वजनिक क्षेत्र व अपने लम्बे पुलिस अनुभव से प्राप्त ज़्यादातर जानकारियों (शोध-सामग्री) का उपयोग किया है। उन्होंने कुछ चौंकाने वाले तथ्यों को उजागर किया है, और अपनी तरह का पहला उनका यह विश्लेषण तथाकथित “इस्लामी आतंकवाद” के पीछे वास्तविक तत्त्वों को बेनक़ाब करता है। ये वही शक्तियां हैं जिन्होंने महाराष्ट्र ए टी एस के प्रमुख हेमंत करकरे की हत्या की, जिसने उन्हें बेनक़ाब करने का साहस किया और अपनी हिम्मत व सत्य के लिए प्रतिबद्धता की क़ीमत अपनी जान देकर चुकाई। यह पुस्तक भारत में “इस्लामी आतंकवाद” से जोड़ी गयीं कुछ बड़ी घटनाओं पर एक कड़ी नज़र डालती है और उन्हें आधारहीन पाती है।
क़ैदी नम्बर 100: कारागार के दिन-रात
भारतीय यातना घरों में बीते अत्यन्त कष्टदायी क्षणों के बारे में लिखना मेरे लिए आसान नहीं था। हर पल जब भी क़लम हाथ में लेकर लिखने बैठती तो जेल के अंधकारमय जीवन के कष्टदायी दृश्यों के होश उड़ा देने वाले चिह्न मेरे दिमाग़ में ताज़ा हो कर मुझे फिर से बेचैन कर देते और मैं बहुत ज़्यादा मानसिक तनाव में आ जाती। बड़ी देर तक उसी हालत में पड़ी रहती। बहुत मुश्किल से फिर से लिखना शुरू करती, मगर रक्त रंजित यादों की भीड़ फिर से प्रकट हो जाती और मैं दोबारा मानसिक तनाव से घिर जाती। यह सिलसिला किताब लिखने के पूरे काम के दौरान चलता रहा।
रिहाई के बाद से अनिद्रा की बीमारी से ग्रस्त हूं। नींद की दवा खाए बिना सो नहीं सकती हूं। रात-रात भर जागती रहती हूं। घुटन भरे सपने मुझे अब भी आते हैं। सपने में जेल, जेल की सलाखें, जेल के स्टाफ़ और वहां का तनावपूर्ण माहौल देखती हूं। अभी भी जब शाम को छः बजता है तो एक भय सा छा जाता है। छः बजे के बाद घर से बाहर निकलना अजीब सा लगता है, क्योंकि जेल में छः बजे गिनती बंद हो जाती थी और उस आदत ने मेरे दिमाग़ को क़ैद कर दिया है। वैसे तो अब आज़ाद दुनिया में हूं, लेकिन अभी भी बिना हाथ पकड़े मैं सड़क पर आसानी से नहीं चल सकती हूं, क्योंकि पांच साल तक पुलिस वाले मेरा हाथ पकड़ कर तिहाड़ जेल से अदालत और अदालत से तिहाड़ जेल तक ले जाया करते थे। इस आदत ने मेरे दिमाग़ पर वे निशान छोड़े हैं जिनका मिटना मुश्किल है।
—इस किताब का एक अंश / अंजुम ज़मुर्रद हबीब
गुजरात — पर्दे के पीछे Gujarat – Pardey Ke Peechhey (Hindi)
गोधरा रेलवे स्टेशन की दुर्घटना के बाद गुजरात के अनेक इलाक़ों में भड़कने वाले भीषण दंगे गुजरात तथा भारत के चेहरे पर कलंक हैं । इन भीषण दंगों का कारण पुलिस द्वारा क़ानून-व्यवस्था का पालन न करना था । इस पुस्तक में लेखक ने घटनास्थल पर उपस्थित एक उच्च पुलिस अधिकारी की हैसियत से दंगों और बाद में उन्हें छिपाने तथा अपराधियों को बचाने की सुसंगठित सरकारी कोशिशों का पर्दाफ़ाश किया है । दंगों के दौरान उनकी रिपोर्टें और बाद में दंगों की जाँच करने वाले जाँच आयोग के सामने उनके बयान राजनेताओं, पुलिस तथा नौकरशाहों की घिनौनी भूमिका का पर्दाफ़ाश करते हैं । उच्चतम न्यायालय द्वारा गठित विशेष जाँच दल (एस.आई.टी.) के कार्य को उन्होंने निकट से देखा और इस निष्कर्ष तक पहुँचे कि एस.आई.टी. ने अपराधियों को उनके कुकृत्यों का दण्ड दिलाने के बजाय उनको बचाने वाले वकील के तौर पर काम किया । गुजरात के दंगे और बाद की परिस्थितियों के चश्मदीद गवाह ने यह पुस्तक अपनी अन्तरात्मा के बोझ को हल्का करने के लिए लिखी है । The anti-Sikh riots in 1984 and violence in Gujarat, after killing of 59 Ram Bhaktas in Godhra Railway Station, in 2002, and subsequent subversion of Criminal Justice System in Gujarat State, had inflicted infamy on the image of Indian State and its commitment to the Rule of Law. Unlike terrorist attacks and explosions, no communal riots can prolong unless the authorities avoid implementation of Standard Operating Procedure (SOP), to control and contain mass violence and normalize public order. High Voltage mass violence was reported from 11 of 30 police administrative units of Gujarat. Significantly, volume of crime was directly proportionate to the commitment of law enforcers in police and Executive Magistracy, to implement SOP, ignoring extra-legal pressures from unauthorized quarters. The book uncovers the author s experience as a senior police officer and citizen about background, course and aftermath of 2002 communal holocaust. The author provides substantial sound evidence on planners and perpetrators of violence. Basing on his situation assessment reports, the Central Election Commission, in August 2002, had refused to accept the State Assembly Election Schedule proposed by the State Government, after premature dissolution of the Assembly. Instances of complacency of the Judicial Commission by not probing deeply into inputs on the omissions and commissions of government officials and political bureaucracy are delineated. The Special Investigation Team (SIT), constituted by the Supreme Court, had practically transformed into a team of defence lawyers of the planners, organizers and enablers of violence, by booking only foot soldiers of communal crimes, the author lamented. He throws light on the soul-less secularism of the Indian National Congress, betraying opportunistic communalism, by appeasement of minority and majority communalism simultaneously. How the government failed to practice Raj Dharma , both as per the ideals of Indian heritage and provisions of the Constitution of India is explained. The imperativeness of providing statutory frame-work to the concepts of command responsibility and accountability of supervisory cadre in the government, is projected as the vital lesson to be learnt for forestalling repetition of mass crimes in future.
गोलवलकर की ‘हम या हमारी राष्ट्रीयता की परिभाषा’ —एक आलोचनात्मक समीक्षा
यह पुस्तक आरएसएस के प्रकाशनों और दस्तावेज़ों की रोशनी में गोलवलकर के जीवन और विचारों के बारे में वास्तविक सच्चाइयों को सामने लाने का एक प्रयास है। इस पुस्तक में गोलवलकर की 1939 में लिखी “वी ऑर अवर नेशनहुड डिफ़ाइंड” पुस्तक भी है जिसका हिंदी अनुवाद यहाँ प्रस्तुत है। यह पुस्तक 1947 के बाद उपलब्ध नहीं रही है।
We are witnessing a concerted attempt by the RSS to establish MS Golwalkar as the ‘prophet of a resurgent India,’ ‘a saint,’ ‘the best son of Bharat mata,’ and the ‘biggest gift to Hindu society in the 20th Century,’… This inspite of the fact that Golwalkar, throughout his life, remained committed to the concept of Hindutva which meant an inherent faith in Casteism, Racism and Imperialism. He stood for the establishment of a Hindu rashtra, or nation, where minorities like Muslims and Christians could exist only as second class citizens. This book attempts to put across actual facts about Golwalkar’s life and beliefs in the light of his original writings, publications of the RSS, documents available in its archives and many other RSS documents the writer collected over the last 35 years from different parts of the country, especially the original text of his book We or Our Nationhood Defined (1939) which is being fully reproduced in this book. It is the most important text in order to understand the RSS’ concept of Hindu state, and has not been available to the public after 1947.
नंगे पाँव बालक का उदय—एक आत्मकथा Nangey paanw balak ka uday: Ek atmakatha (Hindi)
लेखक देश के प्रसिद्ध वैज्ञानिक, शिक्षा विशेषज्ञ, शिक्षा प्रबंधक, पद्मश्री प्रोफ़ेसर जलीस अहमद ख़ाँ तरीन का जन्म 6 अप्रैल 1947 को मैसूर में हुआ। उन्होंने 1967 से 2007 तक का समय मैसूर विश्वविद्यालय में शिक्षण एवं शोधकार्य में व्यतीत किया। 2001 से 2004 के दौरान कश्मीर विश्वविद्यालय के कुलपति रहे, फिर 2007 से 2013 के दौरान पांडिचेरी विश्वविद्यालय के कुलपति रहे और 2013 से 2015 के दौरान ही एस. अब्दुर्रहमान विश्वविद्यालय, चेन्नई के कुलपति रहे। वह मुस्लिम एजुकेशन सोसाइटी मैसूर के संस्थापक सचिव थे और फ़िल्हाल उसके अध्यक्ष हैं।
ब्राह्मणवादियों के धमाके, मुसलमानों को फाँसी Brahmanvaadion ke dhamake, Musalmanon ko phaansi (Hindi)
ब्लास्ट कर के मुसलमानों पर दोष डालने का ब्राह्मणवादी खेल—-अत्यंत लोकप्रिय पुस्तक ‘करकरे के हत्यारे कौन?’ और ‘26/11 की जांच—न्यायपालिका भी क्यों नाकाम रही?’ के लेखक, पूर्व शीर्ष पुलिस अधिकारी एसएम मुशरिफ़ की यह एक और किताब है। इस किताब का विषय है देश भर में होनेवाले बम धमाकों के पीछे ब्राह्मणवादी छल-प्रपंच और बेगुनाह मुसलमानों पर दोष मढ़ना। अदालतों में दायर कई आरोपपत्रों और उनके द्वारा दिए गए कुछ महत्वपूर्ण निर्णयों की शब्द-दर-शब्द जांच के बाद, और प्रासंगिक अवधियों की प्रेस कतरनों के एक विशाल संग्रह को देखने के बाद, लेखक इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि 2002 के बाद से अधिकांश बम विस्फोटों में आरएसएस, अभिनव भारत, बजरंग दल, जय वंदे मातरम, सनातन संस्था आदि जैसे ब्राह्मणवादी संगठनों का हाथ था। लेकिन आईबी, एनआईए और राज्यों में आतंकवाद निरोधक दस्तों ने, ब्राह्मणवादी तत्वों के सक्रिय समर्थन और मीडिया द्वारा ब्राह्मणवादियों की ओर इशारा करनेवाले महत्वपूर्ण सुराग़ों को जान-बूझकर दबाने के लिए बेगुनाह मुसलमानों पर आरोप लगाया। यहां तक कि कुछ अदालतें भीं प्रभावित हुईं। कुछ अदालतें मीडिया के प्रचार से प्रभावित थीं तो कुछ अभियोजन पक्ष द्वारा गुमराह। लेखक ने सुझाव दिया है कि यदि ऐसे सभी मामलों का पुनरावलोकन कुछ वरिष्ठ न्यायिक अधिकारियों द्वारा किया जाए और उनमें से संदिग्ध लोगों की एक स्वतंत्र और निष्पक्ष एजेंसी द्वारा पुन: जांच की जाए, तो यह पता चलेगा कि इन सभी घटनाओं में ब्राह्मणवादी संलिप्त हैं, उन घटनाओं में भी, जिनमें मुसलमानों को दोषी ठहराया जा चुका है और सज़ा सुनाई जा चुकी है।
भारत-विभाजन विरोधी मुसलमान (Hindi) Bharat-Vibhajan Virodhi Musalmaan
डॉ॰ शम्सुल इस्लाम ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में सबसे अधिक उपेक्षित किये गए अध्याय पर क़लम उठाया है,
संघी आतंकवाद Sanghi Aatankvaad (Hindi)
हमारा देश भारत अपनी गंगा-जमुनी संस्कृति एवं साम्प्रदायिक सौहार्द के लिए प्रसिद्ध रहा है, परन्तु कुछ असामाजिक तत्त्व इसकी इस विशेषता को समाप्त कर यहां के वातावरण में नफ़रत और साम्प्रदायिकता का ज़हर घोलने का प्रयास भारत-विभाजन के पहले ही से करते रहे हैं और आज उनकी ये कोशिशें अपने चरम पर हैं। प्रस्तुत पुस्तक ‘संघी आतंकवाद’ के लेखक युगल किशोर शरण शास्त्री चूँकि स्वयं भी एक लम्बे समय तक संघ-प्रचारक रह चुके हैं, इसलिए उन्होंने संघ की इस वैमनस्यपूर्ण तथा विघटनकारी मानसिकता को बहुत क़रीब से जाना और पूरी निर्भीकता के साथ, मुखर रूप से अपनी इस पुस्तक में प्रस्तुत किया है। इसके साथ ही उन्होंने इन असामाजिक तत्त्वों द्वारा इस्लाम के बारे में फैलायी जा रही ग़लतफ़हमियों को भी दूर करने का प्रयास किया है। यह पुस्तक संघी आतंकवाद की मानसिकता को समझने तथा उसके बारे में लेखक के मुखर एवं स्पष्टवादी विचारों को जानने के लिए अवश्य पढ़ी जा सकती है।
सावरकर–हिन्दुत्व मिथक और सच Savarkar-Hindutva: Mithak aur Sach (Hindi)
हिन्दू राष्ट्रवाद और आरएसएस Hindu Rashtravaad aur RSS (Hindi)
शम्सुल इस्लाम दिल्ली विश्वविद्यालय में राजनीति शास्त्र के अध्यापक रहे हैं और जन नाट्यकर्मी हैं। शम्सुल इस्लाम ने एक लेखक, पत्रकार और स्तम्भकार के तौर पर भारतीय उपमहाद्वीप में धार्मिक कट्टरता, अमानवीकरण, साम्राज्यवादी मंसूबों, महिलाओं और दलितों के दमन के ख़िलाफ़ हिन्दी, उर्दू और अंग्रेज़ी में लगातार लिखा है। वे राष्ट्रवाद के उदय और उसके विकास पर मौलिक शोध कार्यों के लिए दुनिया भर में जाने जाते हैं।
પડદા પાછળનું ગુજરાત Parda Paachhalnu Gujarat (Gujarati)
આર. બી. શ્રીકુમાર ગુજરાત કૅડરના સેવાનિવૃત્ત આઈ.પી.એસ. અધિકારી છે. રાજ્યમાં જુદા જુદા ઉચ્ચ પદો પર ફરજો બજાવ્યા ઉપરાંત 9 એપ્રિલ 2002થી 18 સપ્ટેમ્બર 2002 દરમિયાન તેઓ ગુજરાતમાં ઇન્ટેજલિજન્સ વિભાગના અધિક પોલીસ મહાનિદેશક તરીકે રહી ચૂક્યા છે. આ જ કારણે તેઓએ ગુજરાતમાં ઘટેલી ઘટનાઓ અને તે પછી ઊભી થયેલી પરિસ્થિતિઓને બહુ જ નજીકથી નિહાળી અને તત્કાલિન રાજ્ય સરકારને સાથ નહીં આપવાના કારણસર તથા પંચ સમક્ષ સાચે સાચું બયાન આપવાના કારણે તેઓ સરકારના ઉગ્ર પ્રકોપનો શિકાર પણ બન્યા. જો કે અંતે સત્યનો જય થાય છે એ ઊક્તિ અનુસાર તેઓને અદાલત તરફથી ન્યાય તો મળ્યો જ!