ख़ालिद मोहम्मद ख़ान, नवाब सरदार दोस्त मुहम्मद ख़ान, संस्थापक रियासत भोपाल (मध्य प्रदेश) के परिवार से है। उनके द्वारा इस पुस्तक में जंगे आज़ादी के भूले-बिसरे मुसलमान पुरुष एवं महिला सेनानियों के संबंध में लिखा जाना समय की ख़ास ज़रूरत है। इस महत्वपूर्ण कार्य के लिए ख़ालिद मोहम्मद ख़ान की कड़ी मेहनत प्रशंसनीय है। वैसे तो मुस्लिम पुरुष स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदानों के संबंध में कहीं से कभी पढ़ने या सुनने में आ जाता है, लेकिन इस पुस्तक की एक विशेषता यह भी है कि इसमें 6 दर्जन अधिक मुस्लिम महिला स्वतंत्रता सेनानियों के नाम अंकित किये गए हैं। साथ ही उदहारण स्वरुप 10 मुस्लिम महिला स्वतंत्रता सेनानियों की, देश के प्रति त्याग, बलिदान एवं वीरता के कारनामों का विस्तृत रूप से उल्लेख किया गया है। आशा है कि इस पुस्तक को पढ़ कर देश के विभिन्न समुदायों के बीच दूरियां कम होगीं। —मंज़ूर एहतिशाम, हिंदी साहित्यकार, भोपाल, पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित
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Jang-e Azadi aur Musalman (Hindi) जंगे आज़ादी और मुसलमान
Binding | Paperback |
---|---|
Edition | 2024, Second |
ISBN-10 | 8172211139 |
ISBN-13 | 9788172211134 |
Language | Hindi |
Pages | 380 |
Publish Year | 2019 |
Author |
Khalid Muhammad Khan |
Publisher |
Pharos Media & Publishing Pvt Ltd |
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Jang-e Azadi aur Musalman (Hindi) जंगे आज़ादी और मुसलमान
₹495.00 Original price was: ₹495.00.₹450.00Current price is: ₹450.00.
Binding | Paperback |
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Edition | 2024, Second |
ISBN-10 | 8172211139 |
ISBN-13 | 9788172211134 |
Language | Hindi |
Pages | 380 |
Publish Year | 2019 |
Author |
Khalid Muhammad Khan |
Publisher |
Pharos Media & Publishing Pvt Ltd |
Khalid Muhammad Khan
लेखक ख़ालिद मोहम्मद ख़ान, संस्थापक रियासत भोपाल (मध्य प्रदेश) नवाब सरदार दोस्त मुहम्मद ख़ान के परिवार की नौवीं पीढ़ी के एक सदस्य हैं, साथ ही मध्यप्रदेश विधान सभा के सेवानिवृत्त अवर सचिव भी हैं। अपनी कड़ी मेहनत, लगन और ईमानदाराना कार्यशैली के कारण मध्यप्रदेश शासन द्वारा माननीय पूर्व लोकसभा अध्यक्ष स्वर्गीय श्री सोमनाथ चटर्जी के करकमलों से इन्हें वर्ष 2008 में ‘संसदीय उत्कृष्टता पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया। लेखक द्वारा वर्ष 2002 में ‘दास्तान-ए-भोपाल’ नामक पुस्तक हिन्दी एवं उर्दू में प्रकाशित की गई। लेखक द्वारा वर्ष 2014 में पुस्तक ‘बीते दिन भोपाल के’ प्रकाशित हुई।
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