ऑपरेशन अक्षरधाम : मंदिर पर आतंकी हमला (Hindi)
पूरी दुनिया में ही हिंसा की बड़ी घटनाओं में अधिकतर ऐसी हैं जिन पर राज्य व्यवस्था द्वारा रचित होने का शक गहराया है। लेकिन रहस्य खुलने लगे हैं।
राज्य व्यवस्था को नियंत्रित करने वाले समूह अपनी स्वभाविक नियति को कृत्रिम घटनाओं से टालने की कोशिश करते हैं। वे अक्सर ऐसी घटनाओं के ज़रिए समाज में धर्म परायण पृष्ठभूमि वाले लोगों के बीच अपने तात्कालिक ज़रूरत को पूरा करने वाला एक संदेश भेजते हैं। उनका मक़सद समाजिक जीवन का ताना बाना और इंसानियत नहीं होती हैं। लेकिन यह इंसानी फ़ितरत है कि मूल्यों व संस्कृति को सुदृढ़ करने के मक़सद से जीने वाला सामान्य जन व बौद्धिक हिस्सा उस तरह की तमाम घटनाओं का अन्वेषण करता है और रचे गए झूठों को नकारने के लिए इतिहास की ज़रूरतों को पूरा करता है।
भारत में तीसेक वर्षो के दौरान जो बड़ी हिंसक घटनाएं हुईं उनके बारे में लोक धारणा स्पष्ट है। रक्षक जब भक्षक होता है तो लोक मानस अपनी तैयारी में जुट जाता है। अक्षरधाम की घटना का अन्वेषण बेहद तथ्यात्मक और तार्किक रूप में किया गया है। पूरी दुनिया में लोगों के खि़लाफ छेड़े गए एकतरफ़ा युद्ध के इस अध्याय का यह बारीकी से प्रस्तुत विवरण भी है और लोकतांत्रिक और समानता पर आधारित शासन व्यवस्था की खोज की दीर्घकालीन ज़रूरत का दस्तावेज़ भी।
आतंकी घटनाएं ‘कैपेबिलिटी डेमोंस्ट्रेशन’ अपने अंतर्विरोधों के बावजूद सत्ता की आम सहमति और आत्मघाती दस्तों के आविष्कार की एक पैकेजिंग है। यह आम धारणा आकार ले रही है और वह भविष्य में अपने राजनीतिक रास्तों की तलाश में लग चुकी है। पंजाब में आतंकवाद के अन्वेषण ने वहां एक नए तरह के राजनीतिक विमर्श को खड़ा किया है। यह किताब मुस्लिम आतंकवाद के शीर्षक की तमाम घटनाओं के ऐसी ही पड़ताल की ज़रूरत का एक दबाव बनाती है।
अनिल चमड़िया
वरिष्ठ पत्रकार