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गोलवलकर की ‘हम या हमारी राष्ट्रीयता की परिभाषा’ —एक आलोचनात्मक समीक्षा

यह पुस्तक आरएसएस के प्रकाशनों और दस्तावेज़ों की रोशनी में गोलवलकर के जीवन और विचारों के बारे में वास्तविक सच्चाइयों को सामने लाने का एक प्रयास है। इस पुस्तक में गोलवलकर की 1939 में लिखी “वी ऑर अवर नेशनहुड डिफ़ाइंड” पुस्तक भी है जिसका हिंदी अनुवाद यहाँ प्रस्तुत है। यह पुस्तक 1947 के बाद उपलब्ध नहीं रही है।

We are witnessing a concerted attempt by the RSS to establish MS Golwalkar as the ‘prophet of a resurgent India,’ ‘a saint,’ ‘the best son of Bharat mata,’ and the ‘biggest gift to Hindu society in the 20th Century,’… This inspite of the fact that Golwalkar, throughout his life, remained committed to the concept of Hindutva which meant an inherent faith in Casteism, Racism and Imperialism. He stood for the establishment of a Hindu rashtra, or nation, where minorities like Muslims and Christians could exist only as second class citizens. This book attempts to put across actual facts about Golwalkar’s life and beliefs in the light of his original writings, publications of the RSS, documents available in its archives and many other RSS documents the writer collected over the last 35 years from different parts of the country, especially the original text of his book We or Our Nationhood Defined (1939) which is being fully reproduced in this book. It is the most important text in order to understand the RSS’ concept of Hindu state, and has not been available to the public after 1947.

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“गोलवलकर की ‘हम या हमारी राष्ट्रीयता की परिभाषा’ — शम्सुल इस्लाम द्वारा एक आलोचनात्मक समीक्षा

ख़ुशवंत सिंह लिखते हैं — “गोलवलकर पर सावरकर के विचारों की गहरी छाप थी, दोनों जातिवाद के समर्थक थे और हिटलर द्वारा लाखों-लाख यहूदियों के जनसंहार को जायज़ ठहराते थे। वे यहूदीवादी राज्य इज़राइल के इसलिए समर्थक थे कि इसने अपने पड़ोसी मुसलमान देशों से लगातार युद्ध छेड़ रखे थे। इस प्रकार इस्लाम से घृणा हिन्दुत्व का एक अभिन्न अंग बनकर उभरा। गोलवलकर की पुस्तक वी ऑर अवर नेशनहुड डिफ़ाइंड की मुझे जानकारी नहीं थी। अब इसे सम्पूर्ण रूप से शम्सुल इस्लाम की पुस्तक में आलोचना के साथ छापा गया है। मैंने जो कुछ कहा है इससे उसकी पुष्टि होती है।”

इधर हम आरएसएस द्वारा अपने द्वितीय सरसंघचालक एम.एस. गोलवलकर को ‘फिर से जागे भारत के मसीहा’, ‘एक संत’, ‘एक नये विवेकानंद’, ‘भारत माता के सर्वश्रेष्ठ सपूत’ और ‘बीसवीं सदी के हिन्दू समाज को मिले सबसे बड़े उपहार’ के रूप में स्थापित करने के नियमित प्रयासों के गवाह रहे हैं। यह सब इसके बावजूद प्रचारित किया जाता रहा है कि वे अपनी पूरी ज़िन्दगी हिन्दुत्व की एक ऐसी परिभाषा के प्रति समर्पित रहे, जिसका अर्थ जातिवाद, नस्लवाद तथा अधिनायकवाद में अन्तर्निहित विश्‍वास था। वे भारत में एक ऐसे हिन्दू राष्ट्र के पक्षधर थे, जहाँ मुसलमान और ईसाईयों जैसे अल्पसंख्यक केवल दोयम दर्जे के नागरिक की तरह रह सकते थे और सिख, जैन और बौद्ध धर्मों को यहाँ केवल हिन्दू धर्म के अंग के तौर पर ही मान्यता दी जा सकती थी।

Weight280 g
Dimensions8.5 × 5.5 × 0.6 in
Binding

Paperback

Edition

First

ISBN-10

8172211155

ISBN-13

9788172211158

Language

Hindi

Pages

238

Publish Year

2020

Author

Shamsul Islam

Publisher

Pharos Media & Publishing Pvt Ltd

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